दुर्गा पूजा तीसरा अध्याय: कथा, महत्व और मंत्र
दुर्गा पूजा तीसरे अध्याय की कथा, संस्कृत मंत्र, महत्व और साधना विधि जानें। नवरात्रि व दैनिक जीवन में पाठ के लाभों का विस्तृत विवरण।

प्रस्तावना
भारत की संस्कृति और धार्मिक परंपराओं में दुर्गा पूजा का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है। दुर्गा सप्तशती, जिसे चंडी पाठ भी कहा जाता है, देवी दुर्गा की महिमा का अद्भुत ग्रंथ है। इसमें 13 अध्याय हैं और प्रत्येक अध्याय का अपना विशिष्ट महत्व है।
इन अध्यायों में तीसरा अध्याय विशेष रूप से पूजनीय माना जाता है। इसमें देवी दुर्गा और महिषासुर का युद्ध, देवी की वीरता और दैवीय शक्ति का वर्णन है। इस अध्याय का पाठ केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि जीवन में सकारात्मक ऊर्जा, साहस और आत्मविश्वास का स्रोत भी है।
आइए विस्तार से जानते हैं तीसरे अध्याय की कथा, संस्कृत मंत्र, महत्व, साधना विधि और इसके लाभ।
दुर्गा पूजा तीसरा अध्याय: कथा का विस्तृत वर्णन
महिषासुर का उत्पात
कथा के अनुसार, महिषासुर नामक असुर ने तपस्या कर ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त किया। उसे यह वर मिला कि कोई भी देवता, दानव या असुर उसका वध नहीं कर पाएगा। वरदान पाकर महिषासुर ने अहंकार में आकर तीनों लोकों पर कब्ज़ा कर लिया।
- उसने इंद्रलोक से देवताओं को निकाल दिया।
- यज्ञ, पूजन और धार्मिक कर्म बंद हो गए।
- चारों ओर अत्याचार और भय का वातावरण फैल गया।
देवी दुर्गा का प्रकट होना
देवताओं ने भगवान ब्रह्मा, विष्णु और शिव से मिलकर प्रार्थना की। सभी देवताओं की सामूहिक शक्तियों से महाशक्ति दुर्गा का प्राकट्य हुआ।
- उनके मुख से तेज निकल रहा था।
- उन्होंने दस भुजाओं में शस्त्र धारण किए।
- उनका स्वरूप अत्यंत दिव्य और तेजस्वी था।
युद्ध का आरंभ
देवी ने महिषासुर और उसके असुरों से युद्ध करना शुरू किया।
- देवी के शस्त्रों से असंख्य असुर मारे गए।
- महिषासुर ने कभी हाथी, कभी सिंह और कभी भैंसे का रूप धारण कर देवी को छलने का प्रयास किया।
महिषासुर वध
आख़िरकार, देवी ने अपने त्रिशूल से महिषासुर का वध किया।
- महिषासुर का अहंकार समाप्त हुआ।
- देवताओं ने पुनः अपना स्थान प्राप्त किया।
- धरती पर धर्म और न्याय की पुनः स्थापना हुई।
👉 यह कथा केवल धार्मिक दृष्टि से नहीं, बल्कि सत्य की असत्य पर विजय का शाश्वत संदेश देती है।
संस्कृत श्लोक और उनका अर्थ
देवी की सार्वभौमिक शक्ति
“या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥”
अर्थ: जो देवी समस्त प्राणियों में शक्ति के रूप में विद्यमान हैं, उन्हें बार-बार प्रणाम है।
महिषासुर वध का वर्णन
“स धूत्वा तु महिषं देवीं छिन्नखुरमस्तकम्।
पपात निहतो भूमौ प्राणस्तस्य ततः शरत्॥”
अर्थ: जब देवी ने महिषासुर का मस्तक और खुर काट दिया, तब वह भूमि पर गिर पड़ा और उसका जीवन समाप्त हो गया।
👉 इन मंत्रों के पाठ से साधक को मानसिक शांति और अदम्य शक्ति का अनुभव होता है।
दुर्गा पूजा तीसरे अध्याय का महत्व
धार्मिक महत्व
- यह अध्याय सत्य की विजय और धर्म की स्थापना का प्रतीक है।
- नवरात्रि में इसका पाठ करने से देवी दुर्गा का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है।
- यह नकारात्मक शक्तियों और शत्रुओं से रक्षा करता है।
आध्यात्मिक महत्व
- यह हमें सिखाता है कि हर इंसान के अंदर भी महिषासुर जैसे नकारात्मक भाव (क्रोध, अहंकार, आलस्य) रहते हैं।
- साधना और भक्ति के द्वारा हम इन्हें समाप्त कर सकते हैं।
व्यावहारिक महत्व
- कठिन परिस्थितियों में भी साहस बनाए रखने की प्रेरणा देता है।
- तनाव और भय से मुक्ति पाने में सहायक है।
- नियमित पाठ करने से आत्मविश्वास और सकारात्मक सोच बढ़ती है।
दुर्गा पूजा तीसरे अध्याय का पाठ करने की विधि
तैयारी
- स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- पूजा स्थल पर माता दुर्गा की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
- घी का दीपक और धूप जलाएं।
पाठ विधि
- पहले “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे॥” मंत्र का 11 बार जप करें।
- इसके बाद तीसरे अध्याय का संपूर्ण पाठ करें।
- लाल फूल, सिंदूर, नारियल और मिठाई माता को अर्पित करें।
- अंत में आरती और प्रार्थना करें।
विशेष सुझाव
- नवरात्रि की अष्टमी और नवमी को पाठ विशेष फलदायी होता है।
- अगर समय कम हो तो केवल “या देवी सर्वभूतेषु…” श्लोक का 11 बार जप भी पर्याप्त है।
तीसरे अध्याय के पाठ से होने वाले लाभ
- मानसिक शांति और स्थिरता मिलती है।
- आत्मविश्वास और साहस में वृद्धि होती है।
- पारिवारिक कलह और बाधाएँ कम होती हैं।
- शत्रुओं और नकारात्मक शक्तियों से रक्षा होती है।
- व्यवसाय और कार्यक्षेत्र में सफलता मिलती है।
👉 बहुत से साधक मानते हैं कि नियमित पाठ करने से जीवन में अचानक आने वाली समस्याओं से मुक्ति मिलती है।
आधुनिक जीवन में तीसरे अध्याय की सीख
आज की व्यस्त और तनावपूर्ण जिंदगी में यह अध्याय हमें कई व्यावहारिक सबक देता है:
- जैसे देवी ने असुरों को परास्त किया, वैसे ही हमें अपने अंदर के नकारात्मक विचारों को खत्म करना चाहिए।
- कठिन परिस्थितियों में भी धैर्य और विश्वास बनाए रखना चाहिए।
- यह अध्याय हमें सिखाता है कि सच्चाई और न्याय की जीत हमेशा होती है।
👉 उदाहरण:
- यदि कोई विद्यार्थी पढ़ाई में बार-बार असफल हो रहा है, तो यह अध्याय उसे आत्मबल और धैर्य देता है।
- कोई व्यापारी कठिनाईयों का सामना कर रहा हो, तो यह पाठ उसकी सोच को सकारात्मक बनाता है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
❓ तीसरे अध्याय का पाठ कब करना चाहिए?
👉 नवरात्रि, विशेष रूप से अष्टमी और नवमी के दिन। रोज़ भी इसे पढ़ा जा सकता है।
❓ क्या केवल संस्कृत जानने वाले ही इसे पढ़ सकते हैं?
👉 नहीं। हिंदी अनुवाद के साथ कोई भी व्यक्ति श्रद्धा से पाठ कर सकता है।
❓ क्या घर में अकेले भी पाठ किया जा सकता है?
👉 हाँ, बस मन में शुद्ध भाव और विश्वास होना चाहिए।
❓ क्या इससे धन और कार्यक्षेत्र में लाभ मिलता है?
👉 हाँ, यह आत्मविश्वास बढ़ाता है और नकारात्मक बाधाओं को दूर करता है, जिससे कार्य में सफलता मिलती है।
निष्कर्ष
दुर्गा पूजा तीसरा अध्याय केवल एक धार्मिक कथा नहीं है, बल्कि यह जीवन जीने की गहन शिक्षा भी देता है। यह अध्याय बताता है कि धैर्य, साहस और विश्वास से हम किसी भी बुराई या कठिनाई पर विजय प्राप्त कर सकते हैं।
नवरात्रि के दिनों में इस अध्याय का पाठ विशेष फलदायी होता है। यदि आप इसे नियमित जीवन में शामिल करते हैं तो यह आपके लिए मानसिक शांति, आत्मविश्वास और सफलता का मार्ग खोल सकता है।
👉 इसलिए, चाहे आप विद्यार्थी हों, गृहस्थ हों या व्यवसायी — तीसरे अध्याय का पाठ आपकी जिंदगी को बेहतर बना सकता है।